15.12.08


व़क्तकी गठरीमें लिपटे हम कहां उलझा गये
थे अभी मक़तापे हम, मत्लापे कैसे आ गये

रातकी काली घटामे चांद क्युं खामोश है
बेतहाशा रोशनीसे आज जुगनू छा गये

मैकदेसे ही गुझरताथा मसीदका रास्ता
खा़मखा़ हमसे हमारे मौलवी कतरा गये

वो बडी मासुमीयतसे प्यार क्या है चीज़ वो
होंठका कौना हिलाके बस मुझे समझा गये

जींदगी सारी जीसे हम ढुंढ ना पाये कभी
वो सकुने जींदगी दो गज़ जमीमे पा गये

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