17.1.09


कोई आंखोसे , कोई ईशारोंसे बोले
कोई खिडकीको गलीयोंमे धीरेसे खोले

कौन सुनता है शहेनाईओके सुरोंमे
हंसते हंसते चलो आज चुपकेसे रोले

गर्म सांसोकी आहटने चौंका दीया था
कानमें कहे रही कुछ, वो हलकेसे हौले

शोक़ीया तोरपे खा रहे थे वो क़समे
हम यहां उनके वादों को लम्होसे तोले

ज़ींदगी काटली पुरी करवट बदलके
अब चलो कब्रमें ही सहुलियतसे सोले

2 comments:

hem pandey said...

'ज़ींदगी काटली पुरी करवट बदलके
अब चलो कब्रमें ही सहुलियतसे सोले'

यह पद अच्छा लगा लेकिन टाइपिंग या व्याकरण की गलती खटकने वाली है.

Anonymous said...

nice one
papa.......