मेरी कश्ति, तेरे साहिलपे लगाउं कैसे
जो शमा ही ना जली हो, वो बुझाउं कैसे
मेरे किस्से, मेरे चर्चे तो सुनाइ देंगे
जो हकिक़्त ही नही हो, वो सुनाउं कैसे
झुक गई आंख, क़मरभी तेरे दर तक़ आते
ईससे बढकर मेरे सर को में झुकाउं कैसे
जो भी ग़म थे, सभी अपनोसे मिले है यारो
कोइ क़तरा, किसी गैरोको पिलाउं कैसे
बेखबर हम है, वफा चीज़ है क्या, ना जानु
जिसकी फितरत ही नही उसको जताउं कैसे
जो शमा ही ना जली हो, वो बुझाउं कैसे
मेरे किस्से, मेरे चर्चे तो सुनाइ देंगे
जो हकिक़्त ही नही हो, वो सुनाउं कैसे
झुक गई आंख, क़मरभी तेरे दर तक़ आते
ईससे बढकर मेरे सर को में झुकाउं कैसे
जो भी ग़म थे, सभी अपनोसे मिले है यारो
कोइ क़तरा, किसी गैरोको पिलाउं कैसे
बेखबर हम है, वफा चीज़ है क्या, ना जानु
जिसकी फितरत ही नही उसको जताउं कैसे
No comments:
Post a Comment