6.7.09

शरबती आंखे युम्हारी, क्या कहें
नींदमें जागे, तुम्हारी क्या कहें
करवटें तो ठीक थी पर अब भला
सलवटें चाहें तुम्हारी, क्या कहें
ये खुला आकाश लगता है मुझे
फैलती बाहें तुम्हारी, क्या कहें
मंझिलें भी आजकल, सुनता हुं मै
पूछती राहें तुम्हारी क्या कहें
थामलो या छोडदो मरझी सनम
जो भी हो आगे तुम्हारी क्या कहें

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