13.10.07

कहां जीनेकी है ख्वाइश हमे अब

कहां जीनेकी है ख्वाइश हमे अब
करो यारों खुदा हाफीझ हमे अब

मरे हम सौ दफ़ा उनकी अदापे
भला कहेतें है वो कातिल हमे अब

गज़ल ऐसी लिखी के ढूंढते है
कभी मोमीन , कभी गालिब हमे अब

न तुम हो और हो जालिम ये सावन
जलाती और भी बारीश हमे अब

नज़रसे गिरके भी हम चुप रहे तो
जहां से कर दिया खारिज हमे अब

दबासा फुल हुं पन्ने कुर्राने
न समझो खामखा काफीर हमे अब

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