18.9.08

युं हम चले जो हवा चली
शहर शहर और गली गली

फिझाँ भी अपनीथी हमनवा
छुआ तो गुमसुम खिली कली

चरागे रोशन मैं हुस्नका
शमा भी हमसे बहुत जली

लबोंने हंसके जो कहे दीया
जो बात कहेनीथी वो टली

चलो नया कुछ करें अभी
ये शाम वैसे भी है ढली

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