25.2.10

ठंडी आंहे क्युं भरता हे
गुम सुम सा तुं क्युं रहेता हे
दिलकी फितरत, टुट ही जाना
फीर पछतावा क्युं करता हे
तुं ख्वा़बोंका सुरमा डाले
दो आंखोसे क्युं बहेता हे
धुंधला साया हमसे पुछे
दिन, हरदिन ये क्युं ढलता हे
ना बदलेगी हाय लकी़रें
हाथोको तुं क्युं मलता हे
का़फी दुरी पर है मस्जीद
मयखानेमें क्युं डरता हे

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