3.2.08


मे नही करता कोई शिक़वे गिले
होठ मेरे खौफसे हरदम सिले

आदमी बुढा़ हो या कोई दरख़्त
चल पडे थे पतझडों के सिलसिले

बेचने निकलाथा मे मेरा इमां
चंद जो सिक्के मीले खोटे मिले

सिर्फ ऊंचाइ का फन काफी नहीं
आसमांमे ना कोइ गुलशन खिले

हमसफर हमराझ कोइ ना रहा
छोडके हम चलदीये सब काफ़िले

कब्र मे तो हम गये आखिर खुदा
झुर्म क्युं हमपे लगाया कातिले
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