25.1.08


हथेलीपे लीखे हुए राझ है
खुदा तेरा कैसा ये अंदाझ है

बहोत ढुंढता हुं उन्हे ख्वाबमें
सुना हे की वो अब भी नाराझ है

दुआ आपकी है ,मेरा आसमां
ग़झल ही मेरे दोनो परवाझ है

लबोंसे जो शायद नीकल ना सके
हर एक आह मेरी, वो अल्फाझ है

यहां मोत आती दबे पांवसे
कहां कोई सांसोकी आवाझ है

हमे मोतसे कोई शिक़्वा नहीं
नई ज़ीदगीका वो आग़ाझ है

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