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जख़्म ऐसा दीया है की भरता नहीं
कोई मरहम, दुआ काम करता नहीं
मन करे, पंख फैलाउं ख्वाबोके में
झोंपडीमें ये मुमकीन ही होता नहीं
एक ही दायरेमें तुं कब तक चले
पांव तेरा क्युं तीजा नीकलता नहीं
कीतनी मासुमसी है मगर उसका दिल
मोम होके भी गोया पिघलता नहीं
ए खुदा मेरे कुचेसे अच्छा है ये
कब्रसे ईसलीये बंदा उठता नहीं
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