7.6.11

कोई है शिक़वा, कोई गिला है
हमे चाहीये था, वो सब कुछ मिला है

जलुं में पिघलकर, में जल जल के पिघलुं
दिया, किस तरहका ख़ुदा ये सिला है

उठाओं ना उंगली, मेरी शोहरतों पे
हमीसे तो बदनाम ये क़ाफिला है

शमा बुझ गई, रात ढलनेसे पहेले
पतंगा, सुना है, बडा बर्फिला है

सम्हलता था जीसकी बदौलत, नशेमें
खुदा मेरे अंदरका कुछ कुछ हिला है

बहुत कब्र पर रात भर कोई रोया
क़डी धूपमें भी समा ये गीला है

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