27.12.07


कभी हम भी हंसतेथे पुछो उन्हे तुम
दिलो जां मे बसतेथे पुछो उन्हे तुम

न गरझे थे बादल न चमकीथी बिजली
बखुबी बरसतेथे पुछो उन्हे तुम

हमे आयनेसे थी अक़्सर शिकायत
सम्हलते हि फंसतेथे पुछो उन्हे तुम

निकलना हि होता था कुचेसे उनके
वंही से ये रस्ते थे पुछो उन्हे तुम

पडोशी, पयंबर ये प्रितम थे महेंगे
हमी दोस्त सस्तेथे पुछो उन्हे तुम

हमे क्या पता मैक़दे कौन लाया
कोई तो फरिश्तेथे पुछो उन्हे तुम

ग़मे ईश्कमें अपना सब कुछ गंवाया
यही तो शिरश्ते थे पुछो उन्हे तुम

गिरा एक तारा जो निकले ये आंसु
निभाये युं रिश्ते थे पुछो उन्हे तुम

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