8.7.10

आयनेकी खुद कहां पहेचान है
सबकी बोली बोलता, नादान, है

सिसकियां, आहे, हंसीके साथ ही
सांस लेता है मगर बेजान है

रात गुझरी कीस तरह, घर घरकी वो
जानते सब कुछ हुए, अन्जान है

जो भी देखे, सब तुम्हे बतलायेगा
कोन कहेता है कि वो बेइमान है

मुस्कुरा दो, एक पथ्थर मारके
फीर भी देता सौ गुनी मुस्कान है

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