21.3.11

न ये सोचना की भलाई कहां है
जरा ढूंढले तुं, खुदाई कहां है

ये आंखे, अदाएं, वो घुंघराले गेसु
इन्ही उलझनोसे रिहाई कहां है

गली, आशियां, मैकदा मस्जिदोंके
कीसी मोड पे अब दुहाई कहां है

नज़रसे ही मदहोश होकर चला तुं
अभी तक किसीने पिलाई कहां है

बयां दांस्तां के लिये जींदगीकी
कलममें मेरी वो लिखाई कहां है

मिली है तो हक़से मिली है ये दो गज़
ज़मी दोस्त तुमने दिलाई कहां है

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