2.7.10

कुछ तो होगा नशा, निगाहोंमे
कितने गिरते है तेरी राहों में

लुफ्त इतना कहां है सांसोमें
जीतना घुटकर है तेरी बाहोंमें

ऐसा अंदाझ था सझाओंका
हम भी बहेके रहे गुनाहोंमें

तन्हा ये ज़ीदगी से अच्छा है
मर ही जाये तेरी पनाहोंमें

तुझको हरदम, ना कभी तुं मुझको
फर्क कीतना है अपनी चाहोंमें

3 comments:

Sunil Kumar said...

खुबसूरत शेर दिल की गहराई से लिखा गया बधाई

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत उम्दा गज़ल.