13.2.12

आदतन तेरी खिडकीको देखा सही
फिर मुज याद आया कि तुं ही नहीं

एक दामनकी खुश्बु हवाओं में थी
सांसमें आनी जानी उसीकी रही

रातको सारे जुगनु निकल थे पडे
ना नझर चांद तारे भी आये कहीं

मस्जिदे हो गई आज सुमसाम सी
ए खुदा, तुं भी शायद गया है वहीं
Nanavati

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