29.2.12


हरेक सांस लेकर महेकता है तुं
मगर मोतकी और बढता है तुं

कभी उम्र शिशेमें छुपती नहीं
क्युं अक़सर उसे गौर करता है तुं

यहां हो के भी तुं यहां पर नहीं
छलकता हुआ जाम भरता है तुं

पता पुछने, बनके युं अजनबी
उसीकी गलीसे गुझरता है तुं

वफा नाम मरहमकी उम्मीद में
जख़म बेवफाओका सहेता है तुं

न आता नजर तुं कहीं भी खुदा
सुना आदमीसे ही डरता है तुं

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